NEELAM GUPTA

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लेखनी प्रतियोगिता -27-Nov-2021 भूतों का गांव


भूतों का गांव।🥵🥶🥶

एक दिन चलते चलते अपने खयालों मे खोई सी एक सुनसान स्थान पहूंच गई।एक पत्ता भी नहीं हिल रहा था वहां। मैंने अपने चारों दिशाओं में देखा ।जब कोई नजर नहीं आया तो मेरा दिल धक से रह गया और मुझे रोना छूट गया।मैं अपने आप को असहाय महसूस कर रही थी। मैं अकेली और मेरा अकेलापन और डरा रहा था।
मेरी लट एकदम से हवा की वजह से मेरे चेहरे पर
आ गई।मैं सकपका गई।पसीने छूट गए अब तो। डर से मैंने आखें बंद कर ली जो होगा देखा जाएगा। लेकिन मन में शांति कहां ..एक मिचमिचाती आँख खोल धीरे देखती रहती। कहीं कोई आसपास दिख जाए।एक उम्मीद लगाएं हुए थी।

तभी होले से एक आवाज आई ,क्या हुआ बेटी।

"मैंने देखा वहाँ कोई नहीं है" आप की आवाज कहाँ से आ रही हैं।

मैं यहीं हूँ बेटी ,मैं तुम्हें नजर नहीं आऊंगाँ ।

मैं और डर गई ,कपकपी से सारा शरीर शुन्य पड़ गया। जैसे काटों तो खून भी नहीं। अंदर तक जम गई।

बेटी मेरी बात सुनों ...डरो नहीं, मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुंचाऊगाँ।

अब मेरी थोड़ी आवाज निकली, फिर आप मुझे क्यों डरा रहे है सामने आइये।

बेटी यह भूतों का गाँव है ,तुम्हारे जिंदा इंसानों से बेहतर।यहां सबकी रक्षा की जाती हैं।

लेकिन अब तो जिंदा इंसान, जिंदा होकर भी मरा हुआ है। लोभ लालच, बलात्कारी,हिंसात्मक, व्यभिचारी, आतंकवादी, निंदनीय कार्य में आगे।ऐसे जिंदगी से मरना भला। ये लोग मर कर भी हमें बदनाम करते हैं।जिंदा रहकर मरे के समान हैं।

हम भूत किसी को क्यूँ डराए ,जब तक हमें कोई कुछ नहीं कहता।किसी के द्वारा जब हम जिंदा रहने पर सताए जाते है। हम केवल उन्हीं लोगों को परेशान करते है।क्योंकि जब कोई किसी के साथ धोखाधड़ी करता है या भद्र व्यवहार करता है ,तो उसे अपनी बदकिस्मती बार बार याद आती हैं।स्वयं के डर के कारण हमें अपने आसपास महसूस करता है और फिर हमें भूत पिशाच कहकर हम से डरता है।वह अपने कर्मों से मुंह छिपाता हैं।हमारे नाम की ओट में। और हमारा नाम खाक मे मिलाता हैं। फिर जब हमें गुस्सा आता हैं तो हम भी उनकी नानी याद दिला देते है।आखिर हम भूत हैं हमारी भी कुछ हैसियत हैं।😡😡

हमें जिस रूप में याद करों वहीं हमारा स्वरूप है।अपना समझ महसूस करों तो सदैव हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हैं।हम तुम्हें सचेत रखेंगे। किसी भी विनाशकारी घटना से पहले।तुम अच्छे हो तो कोई तुम्हारा अनहित नहीं कर सकता हैं।

मैं यह बातें जान हैरान हुई।और सोचती रही ये सच ही तो हैं। जब कोई हमारा अपना हमसे दूर दूसरे लोक जाता हैं वह हमारी स्मृतियों मे हमारे साथ रहता हैं। वह हमें तंग क्यों करेगा। इसी उथलपुथल में मैं उलझीं हुई थी।

तभी मम्मी की आवाज आई , अरे अब तो उठ जा ,ये भूतों के सोने का समय होता हैं इंसानों का नहीं ,दिन सिर पर चढ़ आया हैं। मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठी, ऊफ!ये सपने और ये म्म्मियाँ नहीं बदलने वाली चाहे सारी दुनिया तब्दील हो जाए। लेकिन अपने अंदर एक दिव्य शक्ति मैंने महसूस की ।कि मुझे अब भूतों से डर नहीं लगेगा।
🤔🤔🤔🤣🤣🤣😍😍😍🤗🤗🤗🤗🤗


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2 Comments

Zakirhusain Abbas Chougule

27-Nov-2021 09:39 PM

Nice

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Adhbut bahut mja aya😂😂

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